मर्यादा के नाम पर कब तक ---- आखिर कब तक?








                              आखिर कब तक?


कितने ही साल गुज़र गए और ज़िन्दगी भी अपनी रफ्तार के साथ आगे बढ़ती ही चली जा रही है। जीवन में  कभी- कभी ऐसी घटनाएं घटित होती है जो जीवन के प्रति आपका नजरिया ही बदल देती हैं।
आज आधुनिक समय में लोगों की सोच बहुत बदली है खासकर युवा वर्ग की, वो जीवन को अपने तरीके से जीना चाहते हैं। उन्हें अपने जीवन में  किसी की ज्यादा दखलंदाजी पसंद नहीं होती।
और एक हमारा ज़माना था......
बात उन दिनों की है जब मैं 11 क्लास में थी। उस समय क्या तो मेरी सोच होगी और क्या ही मेरे विचार? पर उस समय की घटी एक घटना ने मेरे विचारों पर गहरा प्रभाव छोड़ा। ये कहानी है मेरी सहेली परी के जीवन में घटी एक घटना पर।  परी  के पापा सरकारी आफिसर थे, और स्वभाव से थोड़े गरम मिज़ाज के थे। वो और मेरा भाई अक्सर उनसे कम ही बात करते थे। जो भी उन्हें कहना होता था मम्मी के माध्यम से अपनी बात पहुँचा दिया करते थे। 

एक बार उसके पापा के बड़े अधिकारी के घर पर, उनके बेटे की सालगिरह की पार्टी थी। वह अधिकारी बहुत बड़े आदमी थे और इतने रई  भी। उनका नाम ए. के. श्रीवास्तव था।
अपने पापा के साथ परी , भाई और उसकी मम्मी सब खूब सज संवर कर उस समारोह में गए।
उसके पिता जी अनुशासन प्रिय व्यक्ति थे, इसलिए वे दोनों भाई बहन चुपचाप एक कोने में अपनी अपनी कुर्सी पर बैठ कर प्रोग्राम देखने लगे। पापा- मम्मी सब से मिल रहे थे। तभी स्टेज पर एक डांस का प्रोग्राम शुरु हुआ, और उस समय का बड़ा ही प्रसिद्ध गाना " मुखड़ा चांद का टुकड़ा तेरे नैन शराब के प्याले" बजने लगा। ये परी का भी पसंदीदा गाना था और चोरी छुपे वह भी कभी-कभी इस पर  डांस कर लेती थी । अब उसका भी बड़ा  मन किया इस गाने पर डान्स करने का, पर पापा का डर वह क्या करे? तभी उसके पापा के एक और दोस्त की बेटी जो की उसकी सहेली थी और सहपाठी भी।
वह उसे जबरदस्ती स्टेज पर साथ ले गई और वह भी डांस करने लगी।  अब डर के मारे परी की हालत खराब तभी उसका भाई बोला जो उससे 3 साल छोटा था, कि पापा यहाँ नहीं है अपने दोस्तों के साथ कहीं बाहर गए हैं यह सुनकर और परी का सारा डर गायब और डांस शुरु। उन दोनों सहेलियों ने दिल खोल कर डांस किया। उन दोनों को बहुत मज़ा आया क्योंकि एक तो मन पसंद गाना और इतने सारे लोगों के मुंह से पहली बार अपनी तारीफ़  सुनना मज़ा ही आ गया। खैर सबने खाना खाया थोड़ी  देर बाद मम्मी को पता चला कि  हमने नाचने वालियों के साथ डांस किया है तो उन्होंने परी बहुत डाँटा कि ये सब गलत है तुझे ऐसा नही करना चाहिए था। वह उससे बोली "किसी और की लड़की क्या नाच रही थी? वहाँ,  जो तुम नाचने चल दी। तुम्हारे पापा को पता चलेगा तो देखना क्या हंगामा होगा घर में। उनका गुस्सा मालूम है ना तुमको।" उसने कहा वह मीनू दिनेश अंकल की बेटी वह भी तो नाच रही थी, वही तो ज़िद करके ले गई मुझे। मैं थोड़े ही जा रही थी। उसकी मम्मी बोली वह लोग अलग तरह के है उनके यहाँ यह सब चलता है। नचाना ,गाना ,बजाना वह लोग इसे गलत नहीं मानते पर तुमको तो अपनी मर्यादा में रहना चाहिए।

वह सोच में  पड़  गई कि आखिर इतनी बड़ी क्या गलती हो गई उससे? जो मम्मी मर्यादा जैसा शब्द बोल रही हैं। मर्यादा शब्द का ठीक ठीक अर्थ, परी भी नहीं जानती थी, बस इतनी ही समझ थी कि यह एक भारीभरकम शब्द है। 

खैर, सब ड्राईवर के साथ घर आ गए। उसके पापा घर देर से आए, तब तक वह सो गई थी। सुबह परी की पेशी हुई और पापा ने कहा कि  इस लड़की को समझा दो कि यह अपनी मर्यादा में रहे। बहुत बदनामी करवा दी इसने, सब बोल रहे थे कि "पण्डित जी आपकी बेटी ने तो उस नचनिया को भी मात दे दी बहुत अच्छा नाचती है आपकी बेटी"।मेरा तो ये सुनकर दिमाग गरम हो गया। महकमे के कारण चुप रह गया नहीं तो वहीं बता देता उन सबको।
उसके पापा ने गुस्से से बोला" कुछ अकल -वकल है तुमको कुछ समझ आता है इतनी बड़ी हो गई हो , समझती नहीं हो , कहां ,किस जगह क्या काम करना है क्या नहीं ? वे औरतें नचनियाँ है मतलब गलत औरतें। बस बाकि  मम्मी समझा देगी, पर आगे से ये हरकत की तो बहुत मार पड़ेगी याद रखना समझी।"
वह  बहुत डर गई और कमरे में जाकर बहुत रोयी और बड़बड़ाने लगी "डांस ही तो किया था, इतना क्या गुस्सा और ये क्या मर्यादा का भाषण?
मैं कोई सीता हूँ,जिसने लक्ष्मण रेखा पार कर ली तो मुझे कोई रावण ले जाएगा", क्योंकि रामायण देखते समय ये शब्द मैंने अधिकतर सीता जी के लिए ही सुना था  सबसे।
तभी उसकी मम्मी आती है और बोलती हैं "खाना खा लो फिर मेरे साथ पापड़ बनवा लेना होली के लिए "। तभी उसने मम्मी से पूँछा " कि  गलत औरत क्यूँ  कहा पापा ने उन औरतों को?"
अरे! तुमको क्या लेना देना इन बातों से अपना काम करो ज्यादा दिमाग न लगाया करो।
कुछ दिन यूँही निकल गए हमारी परीक्षाएँ  शुरु हो गई, पर ये सवाल उसके दिमाग में  बैठ गया था। फिर उसने यानि अपनी  दोस्त से पूछा जिसके साथ उसने डांस किया था, परी ने सोचा जब मुझे डांट पड़ी है तो इसको भी डांटा गया होगा। उनका परिवार आधुनिक विचारों का था, उनके यहाँ बच्चों से खुल कर बातें की जाती थीं। उसने ही मेरा सवाल हल किया कि  गलत औरत यानी ' वेश्या'। ये सुनकर वो थोड़ा परेशान और हैरान थी। खैर आगे से उसने कभी कोई भी काम माता- पिता से बगैर पूछे नहीं किया। पर जब परी ने मुझे ये सब बताया था, तो तब मैंने भी इस बात पर ज्यादा ध्यान  नहीं दिया था, शायद लकड़ी ही था, सोच इतनी परिपक्व भी कहां होती है उस उम्र में। बात आई गई हो गई। मेरी भी पढ़ाई पूरी हुई शादी हुई और जिन्दगी आगे बढ़ती चली गई। 

आज परी भी अपने जीवन में आगे बढ़ गई,  पर अपनी शर्तों पर उसने समाज को यह बताया कि असलियत में मर्यादा की आवश्यकता किसे है? उसने अपनी एक ऐसी संस्था खोली उन वेश्याओं की मदद करने के लिए जो, समाज के हाथों का खिलौना बनकर समाज से ही अपमानित होती आ रही हैं। वह समाज के सभ्य, सुसंस्कृत लोगों के साथ मिलकर लड़कियों को बचाती है वेश्या बनने से, और उन्हें आत्मनिर्भर बनाने के लिए उन्हें कई तरह के ऐसे काम, उसकी संस्था उन्हें सिखाती है जिससे  वह आत्मनिर्भर बनें, अपनी रोजी रोटी कमा सकें और आजादी से अपनी मर्जी से जी सकें।

आज मेरे दो बच्चें हैं, कॉलेज में है। आज मैं सोचती  हूँ कि कभी - कभी जीवन में घटी कोई एक घटना किस प्रकार हमारा नजरिया बदल देती है।
उस समय का जीवन और आज का जीवन कितना अलग है मेरे समय में बच्चों की सोच अलग थी, वह माता- पिता के अनुसार ही चलते थे। उन्होने जो कह दिया वही सत्य वचन। पर आज के आधुनिक समय में बच्चे अपनी बुद्धि अपने तर्क के अनुसार ही कार्य  करते हैं।
उस समय परी की एक गलती के कारण उसके माता- पिता ने उसे समाज, मर्यादा सबका ज्ञान दे दिया और वेश्याओं को गंदी औरतें तक कह दिया।


वेश्या को सदैव समाज में  गंदा और गलत ही समझा जाता रहा है बल्कि इसी समाज ने उन्हें ये घृणित जीवन  दिया है। कोई भी लड़की अपनी मर्जी से वेश्या नहीं बनती उनकी मजबूरियों से फायदा उठाने वाले लोग,  ये गंदा, और व्यभिचारी समाज  ही उन्हें ये तिरस्कृत जीवन देता है और कितनी आसानी से सफेदपोश लोग उन पर गंदी औरत का ठप्पा लगा देते हैं। हमारा समाज औरत को या तो 'देवी' बनाता है या वेश्या बनाकर एक अलग हाशिए पर सरका देता है।

जबकि वह समाज के नीच मानसिक सोच वाले तबके को आश्रय देकर समाज की गंदगी सदियों से साफ करती आ रही हैं पुरुष जब चाहे उनके पास जा सकता है पर वो वेशयाएं समाज में  कब अपना स्थान बना पायेंगी? कब उन्हें आजादी मिलेगी? कब उनके अस्तितव को स्वीकारा जाएगा? कब समाज के ठेकेदार उन्हें सम्मान दिलवा पाएंगे? इसका कोई भी जवाब हमारे पास नहीं है।, और हम अपने बलबूते पर चांद तक पहुंच चुके है।

आज हर लड़का-लडकी अपनी मर्ज़ी से लिविंग रिलेशन में रह सकते हैं और दोनों को थोड़े समय बाद ये रिश्ता नापसंद हो तो अलग होकर, अलग -अलग इन्सान से शादी भी कर लेते हैं। उन्हें सब स्वीकार कर लेते हैं क्योंकि वो बच्चे गलत होकर भी सही  हैं उनकी सोच आधुनिक है।  वह पढ़े लिखे हैं,  चाहे फिर वो कितने ही  लोगों के साथ रहे हों लिविंग रिलेशनशिप में, यहां समाज को ये सब ठीक लगता है, ठीक है समय के अनुसार हमें अपनी सोच बदलनी चाहिए, ऐसा आज के आधुनिक समाज का मत है ये। चलो, ठीक है।

......पर फिर वेशयाओं के लिए पुरानी सोच क्यूँ? बहुत से आधुनिक देशों में भी सेक्स वर्कर को आज़ादी है, अपने अनुसार अपनी तरह का जीवन जीने की। उनका भी समाज में  सम्मान है फिर इन्हें क्यूँ नहीं है। हमारे देश में इनके प्रति हमारी सोच इतनी विकृत क्यों हो जाती है???
अक्सर हमें कई जगह ऐसे लोग मिलते हैं या टकरा जाते हैं जो आम इंसानों से थोड़ा अलग होते हैं जैसे:- गे या हिजड़े या फिर वेश्याएं क्यों हम इनको देखकर विचलित हो जाते हैं सामान्य  नहीं रह पाते। कई लोग तो इनको देखकर इनके साथ बहुत ही अभ्रद व्यवहार तक करते हैं। ये लोग कब तक ङभ से तिरस्कृत होते रहेंगे? फिर हम ये भी दावा भी करते हैं कि हम एक पढ़े लिखे हैं और पढ़े-लिखे समाज में रहते हैं।
ये कहानी हमें आईना दिखाती है कि हमें अपनी सोच  बदलनी होगी।
आखिर हम सब  इनके लिए अपनी सोच क्यूँ नहीं बदलते, जो हमारे ही समाज के पुरुषों की गंदी सोच को झेलती आ रही है सदियों से। ये आखिर कब तक समाज के हाशिये पर रहेंगी? कब तक? आखिर कब तक  ...........


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