कबीर के दोहे अर्थ के साथ।

कबीर के दोहे  ( गुरु पर दोहे)

कबीर के दोहे कई दशकों से हमर मार्गदर्शन करते आ रहे हैं और आने वाले समय में भी हमारा व हमारी भावी पीढ़ी का मार्गदर्शन करते रहेंगे। यहाँ कबीर के दोहे अर्थ सहित दिये जा रहे हैं।
1- गुरु गोविंद दोउ खड़े, काके लागूं पाँय ।
बलिहारी गुरु आपने, गोविंद दियो मिलाय ॥

अर्थ – कबीर दास जी इस दोहे में कहते हैं कि अगर हमारे सामने गुरु और भगवान दोनों एक साथ खड़े हों तो आप किसके चरण स्पर्श करेंगे? गुरु ने अपने ज्ञान से ही हमें भगवान से मिलने का रास्ता बताया है इसलिए गुरु की महिमा भगवान से भी ऊपर है और हमें गुरु के चरण स्पर्श करने चाहिए।

2- यह तन विष की बेलरी, गुरु अमृत की खान |
शीश दियो जो गुरु मिले, तो भी सस्ता जान ||

अर्थ – कबीर दास जी कहते हैं कि यह जो शरीर है वो विष (जहर) से भरा हुआ है और गुरु अमृत की खान हैं। अगर अपना शीश(सर) देने के बदले में आपको कोई सच्चा गुरु मिले तो ये सौदा भी बहुत सस्ता है।

3-सब धरती काजग करू, लेखनी सब वनराज |
सात समुद्र की मसि करूँ, गुरु गुण लिखा न जाए ||

अर्थ – अगर मैं इस पूरी धरती के बराबर बड़ा कागज बनाऊं और दुनियां के सभी वृक्षों की कलम बना लूँ और सातों समुद्रों के बराबर स्याही बना लूँ तो भी गुरु के गुणों को लिखना संभव नहीं है

5-गुरु सो ज्ञान जु लीजिये, सीस दीजये दान।

बहुतक भोंदू बहि गये, सखि जीव अभिमान॥

अर्थ: कबीर दास जी कहते है किअपने सिर की भेंट देकर गुरु से ज्ञान प्राप्त करो | परन्तु यह सीख न मानकर और तन, धनादि का अभिमान धारण कर कितने ही मूर्ख संसार से बह गये, गुरुपद – पोत में न लगे।
6- गुरु की आज्ञा आवै, गुरु की आज्ञा जाय।
कहैं कबीर सो संत हैं, आवागमन नशाय॥
अर्थ: कबीर दास जी कहते है कि व्यवहार में भी साधु को गुरु की आज्ञानुसार ही आना जाना चाहिए | सद् गुरु कहते हैं कि संत वही है जो जन्म – मरण से पार होने के लिए साधना करता है |
7-गुरु पारस को अन्तरो, जानत हैं सब सन्त।

वह लोहा कंचन करे, ये करि लये महन्त॥

अर्थ: कबीर दास जी कहते है कि गुरु में और पारस – पत्थर में अन्तर है, यह सब सन्त जानते हैं। पारस तो लोहे को सोना ही बनाता है, परन्तु गुरु शिष्य को अपने समान महान बना लेता है।
8-कुमति कीच चेला भरा, गुरु ज्ञान जल होय।

जनम – जनम का मोरचा, पल में डारे धोया॥


अर्थ: कबीर दास जी कहते है कि कुबुद्धि रूपी कीचड़ से शिष्य भरा है, उसे धोने के लिए गुरु का ज्ञान जल है। जन्म – जन्मान्तरो की बुराई गुरुदेव क्षण ही में नष्ट कर देते हैं।
9-गुरु कुम्हार शिष कुंभ है, गढ़ि – गढ़ि काढ़ै खोट।

अन्तर हाथ सहार दै, बाहर बाहै चोट॥

अर्थ: कबीर दास जी कहते है कि गुरु कुम्हार है और शिष्य घड़ा है, भीतर से हाथ का सहार देकर, बाहर से चोट मार – मारकर और गढ़ – गढ़ कर शिष्य की बुराई को निकलते हैं।10-गुरु समान दाता नहीं, याचक शीष समान।

तीन लोक की सम्पदा, सो गुरु दीन्ही दान॥

अर्थ: कबीर दास जी कहते है कि गुरु के समान कोई दाता नहीं, और शिष्य के सदृश याचक नहीं। त्रिलोक की सम्पत्ति से भी बढकर ज्ञान – दान गुरु ने दे दिया।
11-जो गुरु बसै बनारसी, शीष समुन्दर तीर।

एक पलक बिखरे नहीं, जो गुण होय शारीर॥

अर्थ: कबीर दास जी कहते है कि यदि गुरु वाराणसी में निवास करे और शिष्य समुद्र के निकट हो, परन्तु शिष्ये के शारीर में गुरु का गुण होगा, जो गुरु लो एक क्षड भी नहीं भूलेगा।
12-गुरु को सिर राखिये, चलिये आज्ञा माहिं।

कहैं कबीर ता दास को, तीन लोकों भय नाहिं॥

अर्थ: कबीर दास जी कहते है किगुरु को अपना सिर मुकुट मानकर, उसकी आज्ञा मैं चलो | कबीर साहिब कहते हैं, ऐसे शिष्य – सेवक को तनों लोकों से भय नहीं है |
13-गुरु सो प्रीतिनिवाहिये, जेहि तत निबहै संत।

प्रेम बिना ढिग दूर है, प्रेम निकट गुरु कंत॥

अर्थ: कबीर दास जी कहते है कि जैसे बने वैसे गुरु – सन्तो को प्रेम का निर्वाह करो। निकट होते हुआ भी प्रेम बिना वो दूर हैं, और यदि प्रेम है, तो गुरु – स्वामी पास ही हैं।
14-गुरु मूरति गति चन्द्रमा, सेवक नैन चकोर।

आठ पहर निरखत रहे, गुरु मूरति की ओर॥

अर्थ: कबीर दास जी कहते है कि गुरु की मूरति चन्द्रमा के समान है और सेवक के नेत्र चकोर के तुल्य हैं। अतः आठो पहर गुरु – मूरति की ओर ही देखते रहो।
15-गुरु मूरति आगे खड़ी, दुतिया भेद कुछ नाहिं।

उन्हीं कूं परनाम करि, सकल तिमिर मिटि जाहिं॥

अर्थ: कबीर दास जी कहते है कि गुरु की मूर्ति आगे खड़ी है, उसमें दूसरा भेद कुछ मत मानो। उन्हीं की सेवा बंदगी करो, फिर सब अंधकार मिट जायेगा।
16-ज्ञान समागम प्रेम सुख, दया भक्ति विश्वास।

गुरु सेवा ते पाइए, सद् गुरु चरण निवास॥

अर्थ: कबीर दास जी कहते है कि ज्ञान, सन्त – समागम, सबके प्रति प्रेम, निर्वासनिक सुख, दया, भक्ति सत्य – स्वरुप और सद् गुरु की शरण में निवास – ये सब गुरु की सेवा से निलते हैं।


टिप्पणियाँ

एक टिप्पणी भेजें

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

कहानी____कोटर और कुटीर ( सियारामशरण गुप्त)

एक मार्मिक कहानी

नारी पर कविता