जीवन साथी (कविता)
प्रिय जीवन की आपा धापी में हंसती,रोती इन बातों में खट्टी, मीठी उन यादों में कब गुज़रे 25 साल ,प्रिय नहीं रहा कुछ भान, प्रिय
मैं, तुम, से हम बनकरबढ़ते रहे यूं साथ, प्रियज़जबातों के फेरे मेंनए रिशतों के घेरे मेंबंधते रहे दिनरात, प्रियनहीं रहा कुछ भान, प्रिय इक दूजे को जितना जाना है हमने खुद को पहचाना है तुम हो कितने खास, प्रिय इसका है मुझको अहसास, प्रिय तुम देना यूं ही साथ, प्रिय तुम देना यूं ही साथ, प्रिय
शांभवी त्रिपाठी
जीवन की आपा धापी में
हंसती,रोती इन बातों में
खट्टी, मीठी उन यादों में
कब गुज़रे 25 साल ,प्रिय
नहीं रहा कुछ भान, प्रिय
मैं, तुम, से हम बनकर
बढ़ते रहे यूं साथ, प्रिय
ज़जबातों के फेरे में
नए रिशतों के घेरे में
बंधते रहे दिनरात, प्रिय
नहीं रहा कुछ भान, प्रिय
इक दूजे को जितना जाना है
हमने खुद को पहचाना है
तुम हो कितने खास, प्रिय
इसका है मुझको अहसास, प्रिय
तुम देना यूं ही साथ, प्रिय
तुम देना यूं ही साथ, प्रिय
Achhi kavita hai
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