सफदर हाशमी के बारे में
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सफदर हाशमी
सफ़दर हाशमी जी को चुकानी पड़ी सच बोलने की कीमत, सरेआम की गई थी हत्या एक महान कलाकार की।
सफ़दर हाशमी जी की एक जनवरी, 1989 को गाज़ियाबाद के साहिबाबाद में नुक्कड़ नाटक 'हल्ला बोल' के दौरान हत्या कर दी गई । खास बातें:
- सफ़दर हाशमी नाटककार थे.
- सफ़दर हाशमी की आज पुण्यतिथि है.
- 2 जनवरी 1989 को सफ़दर हाशमी ने अंतिम सांस ली थी.
नई दिल्ली: सफ़दर हाशमी एक नाटककार, निर्देशक, गीतकार और कलाविद थे. सफ़दर हाशमी की आज पुण्यतिथि है. भारत में नुक्कड़ नाटक को आगे बढ़ाने में सफ़दर हाशमी का बेहद खास योगदान रहा है. सफ़दर ने अपने नाटकों के माध्यम से शोषित और वंचित लोगों की आवाज को बुलंद किया था. सफ़दर एक संपन्न परिवार से थे, उन्होंने दिल्ली के सेंट स्टीफ़ेंस कॉलेज से अंग्रेजी साहित्य से एमए कर रखा था. सेंट स्टीफ़ेंस में पढ़ाई के दौरान ही उनका जुड़ाव फेडरेशन ऑफ इंडिया की सांस्कृतिक यूनिट और इप्टा से रहा. हाशमी जन नाट्य मंच के संस्थापक सदस्य थे. यह संगठन 1973 में इप्टा से अलग होकर बना, सीटू जैसे मजदूर संगठनों के साथ जनम का अभिन्न जुड़ाव रहा.
1975 में आपातकाल के लागू होने के बाद सफदर जनम के साथ नुक्कड़ नाटक करते रहे. जन नाट्य मंच ने छात्रों, महिलाओं और किसानों के आंदोलनो में अपनी सक्रिय भूमिका निभाई. उनके नाटक 'मशीन' को दो लाख मजदूरों की विशाल सभा के सामने आयोजित किया गया. इस नाटक के द्वारा बखूबी वंचितों के शोषण को प्रभावी तरीके से पेश किया गया. सफ़दर हाशमी के कुछ मशहूर नाटकों में गांव से शहर तक, हत्यारे और अपहरण भाईचारे का, तीन करोड़, औरत और डीटीसी की धांधली शामिल हैं.
सफदर हाशमी कहते थे, ''मुद्दा यह नहीं है कि नाटक कहां आयोजित किया जाए (नुक्कड़ नाटक, कला को जनता तक पंहुचाने का श्रेष्ठ माध्यम है), बल्कि मुख्य मुद्दा तो उस अवश्यंभावी और न सुलझने वाले विरोधाभास का है, जो कला के प्रति ‘व्यक्तिवादी बुर्जुवा दृष्टिकोण' और ‘सामूहिक जनवादी दृष्टिकोण' के बीच होता है.''

सफ़दर हाशमी ने बंगाल सरकार में इंफॉर्मेशन ऑफिसर के पद पर काम किया था. लेकिन 1984 में नौकरी छोड़ वह राजनीति में सक्रिय हो गए. उन्होंने नुक्कड़ नाटकों के माध्यम से
आम लोगों की आवाज़ बुलंद करने का उद्देश्य बना लिया।
उनकी लिखी कविताओं मै से लिखी एक कविता है
किताबें करती हैं बातें
बीते ज़मानों की
दुनिया की, इंसानों की
आज की, कल की
एक-एक पल की
ख़ुशियों की, ग़मों की
फूलों की, बमों की
जीत की, हार की
प्यार की, मार की
क्या तुम नहीं सुनोगे
इन किताबों की बातें?
किताबें कुछ कहना चाहती हैं।
तुम्हारे पास रहना चाहती हैं॥
किताबों में चिड़िया चहचहाती हैं
किताबों में खेतियां लहलहाती हैं
किताबों में झरने गुनगुनाते हैं
परियों के किस्से सुनाते हैं
किताबों में राकेट का राज़ है
किताबों में साइंस की आवाज़ है
किताबों में कितना बड़ा संसार है
किताबों में ज्ञान की भरमार है
क्या तुम इस संसार में
नहीं जाना चाहोगे?
किताबें कुछ कहना चाहती हैं।
तुम्हारे पास रहना चाहती हैं॥
नाटक के दौरान ही क
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बहुत ही उम्दा नाटककार थे ये। इनके नुक्कड़ नाटक तो बहुत ही अच्छे थे, समाज का मार्गदर्शन करते थे।
जवाब देंहटाएंBahut achhe natakar thei
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