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गुलमोहर चौबारे में लगा वह गुलमोहर  मुझको है पास बुलाता  न जाने क्यों इतना मुझे है लुभाता  क्या पता कितने जन्मों का है इससे नाता गांव में गुजरे हर पल की है याद दिलाता इसकी छांव में है बीता बचपन इसके लाल फूलों ने देखा है यौवन हरे  पत्तों में छिपा हर एक राज बंद कलियों ने सहेजी हर याद जब भी कशमकश में घिर जाती हूँ सामने तुम्हें ही पाती हूँ फूलों को बरसा कर तुम प्यार जताते हो तुम कितने मेरे करीब आ जाते हो अंक में भरकर मुझे मीठी नींद सुलाते हो। क्या कभी तुम्हें भूल पाऊंगी फूल तुम्हारे देख मन ही मन लचाऊंगी चौबारे में लगा वह गुलमोहर  मुझको है पास बुलाता  न जाने क्यों इतना मुझे है लुभाता । Shambhavi Tripathi